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कॉलगर्ल

कंप्यूटर स्क्रीन पर संदिग्ध व्यक्ति की मूवमेंट को देख रहा जगदीश बोल उठा। "अभी कुछ भी कहना मुश्किल है।" खटपटिया ने उत्तर दिया दोनों की नजरें कंप्यूटर स्क्रीन पर टिकी हुई थी। वह जो कोई भी था। अच्छी तरह जानता था कि करणदास की वाइफ बाहर है। और इस वक्त करणदास घर में अकेला है। आहिस्ता आहिस्ता वह शख्स करणदास के बेड तक पहुंच गया। उसने अपनी कोट की जेब में छुपाया हुआ तेज धार वाला छूरा बाहर निकाला। और कमरे में निगाहें फेर कर संतुष्ट होने के बाद उसने सोते हुए करणदास के सीने में छूरे के एक साथ चार पाँच वार किए। करणदास कुछ देर छटपटाया और शांत हो गया। करणदास को खत्म करने के बाद वह कमरे में चारों तरफ देख रहा था। करणदास की बॉडी से अभी भी लहू बह रहा था। वह सोया हुआ था इसलिए जल्दी मात खा गया। बाकी उसकी बॉडी ऐसी थी कि वह दस आदमियों पर भी भारी पड़ता उसे वहीं छोड़कर उस नकाबपोश व्यक्ति ने दीवार के पास जाकर लहू सने छूरे से खून पोछकर दीवार पर कठपुतली लिखा। फिर नफरत भरी निगाहों से उसने करणदास को देखा। दुश्मन दम तोड़ चुका है, तसल्ली होते ही हत्यारा दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। खटपटिया ने भागते हुए हत्यारे के सिन को दो-तीन बार रीटेक किये। और उस दृश्य को झुम करके हत्यारे को पहचानने की कोशिश करने लगा। "ध्यान से देखो खूनी को!" कहते हुए खटपटिया ने दोबारा उसी सिन को झुम किया। "देखो बराबर कुछ समझ में आया? हत्यारा कोई पुरुष नहीं बल्कि एक लेडी है। इंस्पेक्टर खटपटिया की आंखें चमक उठी। ब्लैक कोट में ढके हुए शरीर को वह पहचान गया। जगदीश मन ही मन इंस्पेक्टर खटपटिया की तारीफ कर बैठा। "हां सर, वह कोई आदमी नहीं बल्कि औरत है। जगदीश को मानना पड़ा। "मतलब की एक औरत ने इसका खून किया है। अब हमें यह पता लगाना है कि इस औरत के करणदास के साथ क्या दुश्मनी हो सकती है?" जगदीश के सवाल पर खटपटिया बोल उठा, "वह तो अब आने वाला समय ही बताएगा।" अचानक खटपटिया स्क्रीन पर कुछ देखने लगा। अभी भी भागता हुआ हत्यारा स्क्रीन पर बार-बार रिवर्स हो रहा था। "हत्यारी ने हाथों में ग्लोव्ज और शूज पहन रखे थे मतलब की कोई भी सबूत नहीं छोड़ा है उसे अच्छी तरह मालूम था। "पेशेवर खूनी अपने जूतों की साइज तक बदल लेते हैं जगदीश। अब इस महिला से करणदास के क्या ताल्लुकात थे पता लगाना पड़ेगा।" "यस सर, मुझे भी लगता है कुछ न कुछ होने वाला है।" जगदीश और खटपटिया मर्डर केस पर लिए चर्चा कर रहे थे कि तभी टेलिफोन की घंटी बजी। "हेलो सर, हेलो पोपट सर!"  "यस बोलिए खटपटिया स्पीकिंग।" कोई लड़की घबराई हुई आवाज में कह रही थी। "यहां रमन नगर में शराब के अड्डे पर ठुमर सिंह का खून हो गया है। सर आप जल्दी आ जाइए।" "क्या…?"  खटपटिया लगभग उछल पड़ा। उसके पूरे बदन में झुर्झुरी दौड़ गई। "वैसे तुम कौन बोल रही हो?" "मैं उनकी कामवाली राधा बोल रही हूं सर। आप जल्दी आ जाइए। सारी बात फोन पर नहीं हो सकती।" "ठीक है हम पहुंच रहे हैं।" कहकर खटपटिया ने फोन का रिसीवर क्रैडल पर पटक दिया। "जगदीश एक और खून हो गया।" खटपटिया अपनी कुर्सी से उठता हुआ बोला," तुम्हारा अंदाजा बिल्कुल सही निकला! जल्दी चलो यह केस काफी उलझता जा रहा है।" खटपटिया बाहर भागा उसके पीछे जगदीश था। बाकी का स्टाफ हरकत में आये खटपटिया को आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था। **************

ठुम्मर सिंघ यानी की ठमठोर सिंघ मटके जैसी तोंद वाला भारी शख्स था। आलीशान हवेली जैसा उसका घर था। करके दोनों तरफ मुख्य दरवाजे खुलते थे लेकिन नियम यह था कि एक नंबर के सारे काम सामने वाले डोर से हो रहे थे जबकि दो नंबर के बिजनेस के काम को वह पिछले डोर से अंजाम दे रहा था। ऐसा नहीं था कि पुलिस को मालूम नहीं था----दारू का बिजनेस पुलिस के रहम करम के नीचे ही हो रहा था। होता भी क्यों नहीं---वह एक मोटी रकम हप्ते के रूपमें पुलिस चौकी पर पहुंचा देता था। इसलिए पुलिसवाला जानबूझकर उसके धंधे में टांग नहीं अडाते थे। मगर कभी कभी पुलिस की नाक के नीचे भी जुर्म करने वाले कर जाते है। और नारंग को भी मोटी रकम मील जाती थी तो उसकी भी ज़बान बंद रहती थी। वैसे भी भ्रष्टाचार इतना बढ गया है कि कोई काम बीना पेसो से होता नहीं है। अफसरों की रहम नजर बनाये रखने के लिए पैसा जरूरी हो गया था। पुलिस चौकी में यह लेनदेन का काम खटपटिया की गैर मौजुदगी में होता था। ठमठोर सिंघ हमेंशा सोफे पर पसरा नजर आता था। और दिन भर हिन्दी सिनेमा के आइटम सोंग गुनगुनाया करता। टीवी स्क्रीन पर शार्ट कपड़ों में नृत्य करती नर्तकियों को देखना उसके परिवार में किसी भी शब्द को अच्छा नहीं लगता था फिर भी उसके सामने कोई आवाज उठाने की कोशिश नहीं करता था। घर में उसका दबदबा था। उसकी यह आदत जैसे नशा बन चुके थे एलईडी स्क्रीन के सामने बैठकर वह जोर-जोर से गाने के साथ ताल मिलाता था। ठमठोर के आदमी उसकी इस आदत का मजाक उडाते थे। उसदिन भी वह एलईडी स्क्रीन के सामने बैठकर ऊंची आवाज में गाना गुनगुना रहा है। "चिकनी चमेली.... चिकनी चमेली.... पौवा चडाके आई...." कभी कभी वो इतना उन्मादी हो जाता कि फर्श पर उसके कदम थिरकने लगते। आज भी वो गाना गाते हुये मदहोश होकर नाच रहा था। सुबह सुबह रंगा-बिल्ला उसका शोर सुनकर अपनी कोठरी से उठ गये थे। रंगाने तो आते ही कहा था। काश कोई चिकनी चमेली आपकी बाहों में भी होती सेठ।" "कैसे होती?" बिल्ला बीच में ही कुदा था, उनकी तोंद ही इतनी बडी है कि कोई चमेली उनसे संभली नहीं जायेगी।" बिल्ला के व्यंग पर दोनों ही खिलखिलाकर हँस पडे थे। "जाओ, तुम दोनों अपना काम देखो! बाकी मैं सब देख लूंगा।" ठमठोर ने चिडते हुए कहा था। "हा... हा... जाते है। अपनी बीवी को तो संभालने की ताकत नहीं और चिकनी चमेली संभालेंगे।" रंभा जाते हुए बुदबुदाया था। अपने दोनों आदमियों की हरकत से वह अच्छी तरफ वाकिफ था इसलिए उन्हें कहता कुछ नहीं था। क्योंकि दोनों काम के आदमी थे। आज भी उन्हें जल्दी-जल्दी कम पर भेज कर वह इत्मीनान से आइटम सॉन्ग सुनने लगा था लेकिन यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी।

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

30-Sep-2023 10:21 PM

Nice one

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HARSHADA GOSAVI

30-Sep-2023 07:08 AM

Amazing

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Gunjan Kamal

28-Sep-2023 07:57 AM

👏👌

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